Thursday, June 28, 2012

Tujhe dekhe kaun tab


तुझे देखे कौन तब, कोई रंग देखे,
जुल्फों में उलझी बस इक पतंग देखे

अलावा तेरे ,माँगा कोई भी अरमान ,
तुझसे से जलता, तुझसे से तंग देखे

झपकती पलकों पे ,सुन हर शख्स की आह ,
ना पहुचें जो तुझ तक, बस बेरंग देखे

सुपुर्द-ए-ख़ाक होना, पता सबको,
मय्यत पे बिन तेरे,रूह ना जिस्म संग देखे

हर दहलीज़ जहाँ, तेरा बसर नहीं ,
झिझकती सुबहा,शाम की खुद से जंग देखे, - चिराग़

Sunday, July 24, 2011

Befikar raat ki jugaad me

बेफिक्र रात की जुगाड़ में ,सुबह-ओ-दोपहर यूँ उलझा बैठा हूँ
बरामदे में इंतज़ार में बैठी, मौत की उलझने सुलझा बैठा हूँ

बदन की हर नस ,गुहार - ए- आराम नहीं करती आजकल
कानों में खबर है उनके ,मैं जिस्म गिरवी रखवा बैठा हूँ

बारिश की बूदें कतराती है ,मुझ शख्स पे गिरने से
में हर कतरे कतरे को ,भूख प्यास  समझा बैठा हूँ    

खाने का वक़्त कलाई घडी, पूछ के सो जाती है
उसे क्या पता पसीनो को पीके, मैं क्या बचा बैठा हूँ 

अपनी धूप खर्च करके ,चाहे कुछ कमाया या नहीं
हाथो में दबी छुपी लकीरों की, तक़दीर  बदलवा बैठा हूँ

पूछती नहीं है ज़िन्दगी ,काम में इतने जुतने का सबब 'चिराग '
कल रात उसे जरुरत की, फेहरिस्त बतला बैठा हूँ   ---- पुनीत



Teri aankhon ki junban hoti

तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,
बिन किये खर्च पसीने , पता तेरा नाम होता,

क्या रंग लुभाता है तुझे ,कौनसा संगीत बहलाता है तुझे, 
समझने में इस शख्स को , सुबह का ना शाम होता ,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,

हल्की हल्की बारिश में तेरी लटें किस कदर उलझती है,
उस ख्खाब को  देखने में , हमें ना जुकाम होता ,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,

अपनी मुलाकातों में मैं बतियाता , तू खामोश  थी ,
कोई लब्ज अगर फूटता जाता , तो आज  तू मुकाम होता,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,

लाख इजहार किया पर काश तू जबाव दे पाती
इस बन्दे से जिंदगी में इसके अलावा ,कुछ और भी काम होता,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,

कल तितलियों से सुना, तेरी छुअन बड़ी मुलायम है ,
तेरा ये अहसास मेरे मर्ज़ के वास्ते, दवा का काम होता ,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता , -----पुनीत 

Saturday, March 5, 2011

Dard

दर्द ---------
लोग  जानते  है  दर्द  मेरा  ,पर  समझते  नहीं  है ,
गर  समझते  है  तो  कुछ  करते  नहीं  है

तालीम  में  कुछ  कमी  रही  है  दोस्तों ,
 सच  को  दफ़नाने  से   लोग  डरते   नहीं  है

बुजुर्ग  तीमारदारी  की   ख्वाहिश  कैसे  पाले  ,
वक़्त  के  दो  टुकड़े  बेटे  ,बचाकर  रखते  नहीं  है

मौजूदा  ज़िन्दगी  में  महंगा  है  सब  कुछ
कि  जेबों  में  पैसे  के  शोले  कभी  बुझते  नहीं  है ,

सड़क  पे  पड़ा  गड्डा  ,सुनता  है  लाख  ताने ,
लेकिन  लोग  है  कि , उस  का  बदन  ढकते  नहीं  है

समेटे बैठा है अख़बार लाखो काले अक्षर ,
असली ज़ामा  किसी का दिखे, ऐसा कुछ लिखते नहीं है,

लिखकर उबाल लाने  में ,मेरा सारा वक़्त गुजर गया,
और लोग है कि चटकारी खबरों के सिवाय, कुछ पढ़ते नहीं है,--------पुनीत

Thursday, December 16, 2010

Aaj puchha usne

आज पूछा उसने-------
वो बेखबर थे या ना थे , मतलब ए वफ़ा आज पुछा उसने ,
मिला जो मेरा दोस्त नुक्कड़ पे,मेरी कब्र का पता आज पुछा उसने,

दो फूल लेकर वो आये, कैसा लगा तोहफा आज पुछा उसने,
बोले सुनते थे वो मेरी हर आहट,बस वक़्त आने का आज पुछा उसने,

तबियत नासाज़ थी या कुछ गम था,सबब गुजर जाने का आज पुछा उसने,
बारिश में उनसे टकराने पे, माथे पे पसीनो के क्यों आने का आज पुछा उसने,

कैसा हू मैं ,क्या करता हू  मैं , हवा पानी तमाम आज पुछा उसने,
मेरे जन्मदिन पे तुमने आवाज दी थी ,क्या था काम  आज पुछा उसने,

मेरे लिखे कुछ कागज़ के पन्नो का,उसके घर आने का आज पुछा उसने,
तकलीफ तो होगी ,पर मतलब समझाने का आज पुछा उसने,

समेत के अपने आंसू ,कबूल कर लोगे ये आखिरी सलाम आज पुछा उसने,
कुछ कदम चल  के वो पलटे ,क्या था शख्स तेरा नाम आज पुछा उसने,  -----------पुनीत

Monday, August 17, 2009

Fidrat

फिदरत -------
महफ़िल  सज़ चुकी ,बस मयखाना बाकी है दोस्तों,
फ़िक्र नहीं गर, अपना संगदिल साकी  है दोस्तों

पी लेने दो जामो को, कोई बिखरो ना इन्हें,
आखिर हर घूट ए जाम, किसी ना किसी  ज़ख्म को दबाती है दोस्तों

जलाने की फिदरत  माना  लेके बैठे है पैमाने ,
मय की क्या मजाल जब ,हम  शीशो  से टकराती है दोस्तों ,

गुरुर झुक जाता है ,धरती का  बड़ा होने का,
कसक एक अदद बदली, जब सताती है दोस्तों,

पहले पहल सज़ जाता है हुजूम ,हर दर्द के चारो तरफ माना,
बस  हवा ही रह जाती है, पर्दा जब वो उठाती  है दोस्तों,

कीमते चूका बैठे है कतरा कतरा भर  साँस लेने की,
फिर भी ब्याज दर ब्याज, ज़िन्दगी चुकाती  है दोस्तों  ---पुनीत

Tuesday, April 14, 2009

poem - teri kami dikhti hai jab

जब  कभी उनकी कमी दिखती है यारो ,
बस आखो के किसी कोने में नमी दिखती  है  यारो

रुसवाइयो का गुबार यू तो बहुत है  दिल में  लेकिन ,
उसपे एक समझ जमी दिखती  है  यारो

यू तो  साथ चला था , हमारा काफिला मगर  ,
उनकी  मंजिल कही और , रुकी दिखती  है  यारो

चाहत थी उस चादर को ,करीने से सजाने की ,
पर  वो  किसी  और  के  कमरे में , बिछी दिखती  है  यारो

कुरेद के  हम   नाम अपना ,उनकी  जुबा पे लिख आए ,
पर  वो स्याही आजकल , मिटी मिटी  सी दिखती  है  यारो

अपनों का  साथ है  माना , पर  कुछ छूटा है  मुझसे ,
तभी मुस्कराहट मेरी हर महफ़िल में  सिली दिखती  है  यारो

आलम तो  गम का  है , उनके बिछुड़ जाने का ,
पर   ज़माने के  लिए  , ये तबियत खिली दिखती  है  यारो