तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,
बिन किये खर्च पसीने , पता तेरा नाम होता,
क्या रंग लुभाता है तुझे ,कौनसा संगीत बहलाता है तुझे,
समझने में इस शख्स को , सुबह का ना शाम होता ,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,
हल्की हल्की बारिश में तेरी लटें किस कदर उलझती है,
उस ख्खाब को देखने में , हमें ना जुकाम होता ,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,
अपनी मुलाकातों में मैं बतियाता , तू खामोश थी ,
कोई लब्ज अगर फूटता जाता , तो आज तू मुकाम होता,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,
लाख इजहार किया पर काश तू जबाव दे पाती
इस बन्दे से जिंदगी में इसके अलावा ,कुछ और भी काम होता,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता ,
कल तितलियों से सुना, तेरी छुअन बड़ी मुलायम है ,
तेरा ये अहसास मेरे मर्ज़ के वास्ते, दवा का काम होता ,
तेरी आँखों की जुबां होती , कितना आराम होता , -----पुनीत
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