जब कभी उनकी कमी दिखती है यारो ,
बस आखो के किसी कोने में नमी दिखती है यारो रुसवाइयो का गुबार यू तो बहुत है दिल में लेकिन ,
उसपे एक समझ जमी दिखती है यारो
यू तो साथ चला था , हमारा काफिला मगर ,
उनकी मंजिल कही और , रुकी दिखती है यारो
चाहत थी उस चादर को ,करीने से सजाने की ,
पर वो किसी और के कमरे में , बिछी दिखती है यारो
कुरेद के हम नाम अपना ,उनकी जुबा पे लिख आए ,
पर वो स्याही आजकल , मिटी मिटी सी दिखती है यारो
अपनों का साथ है माना , पर कुछ छूटा है मुझसे ,
तभी मुस्कराहट मेरी हर महफ़िल में सिली दिखती है यारो
आलम तो गम का है , उनके बिछुड़ जाने का ,
पर ज़माने के लिए , ये तबियत खिली दिखती है यारो
1 comment:
This is great poem
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