Monday, August 17, 2009

Fidrat

फिदरत -------
महफ़िल  सज़ चुकी ,बस मयखाना बाकी है दोस्तों,
फ़िक्र नहीं गर, अपना संगदिल साकी  है दोस्तों

पी लेने दो जामो को, कोई बिखरो ना इन्हें,
आखिर हर घूट ए जाम, किसी ना किसी  ज़ख्म को दबाती है दोस्तों

जलाने की फिदरत  माना  लेके बैठे है पैमाने ,
मय की क्या मजाल जब ,हम  शीशो  से टकराती है दोस्तों ,

गुरुर झुक जाता है ,धरती का  बड़ा होने का,
कसक एक अदद बदली, जब सताती है दोस्तों,

पहले पहल सज़ जाता है हुजूम ,हर दर्द के चारो तरफ माना,
बस  हवा ही रह जाती है, पर्दा जब वो उठाती  है दोस्तों,

कीमते चूका बैठे है कतरा कतरा भर  साँस लेने की,
फिर भी ब्याज दर ब्याज, ज़िन्दगी चुकाती  है दोस्तों  ---पुनीत

Tuesday, April 14, 2009

poem - teri kami dikhti hai jab

जब  कभी उनकी कमी दिखती है यारो ,
बस आखो के किसी कोने में नमी दिखती  है  यारो

रुसवाइयो का गुबार यू तो बहुत है  दिल में  लेकिन ,
उसपे एक समझ जमी दिखती  है  यारो

यू तो  साथ चला था , हमारा काफिला मगर  ,
उनकी  मंजिल कही और , रुकी दिखती  है  यारो

चाहत थी उस चादर को ,करीने से सजाने की ,
पर  वो  किसी  और  के  कमरे में , बिछी दिखती  है  यारो

कुरेद के  हम   नाम अपना ,उनकी  जुबा पे लिख आए ,
पर  वो स्याही आजकल , मिटी मिटी  सी दिखती  है  यारो

अपनों का  साथ है  माना , पर  कुछ छूटा है  मुझसे ,
तभी मुस्कराहट मेरी हर महफ़िल में  सिली दिखती  है  यारो

आलम तो  गम का  है , उनके बिछुड़ जाने का ,
पर   ज़माने के  लिए  , ये तबियत खिली दिखती  है  यारो

Wednesday, March 25, 2009

wo khwabo ke badal

वो   ख्वाबो के बादलों----------
वो   ख्वाबो के बादलों में कभी दिखा कभी  छुपा छुपा  सा,
मौजूदगी में  उनकी हर पल कभी  चलता कभी  रुका  रुका सा,

हवाओ के  काफिले साथ लाते है एक नया पैगाम,
ना समझने पे आँचल कभी  भीगा कभी  सुखा सुखा  सा,

कुछ कम है  सन्नाटे भरे दिन तरसती राते,
फिर भी चाँद कुछ  उजला कुछ  बुझा  बुझा सा,

तस्वीर बन कर उनकी  किताबो में  हम है ,
शायद हो रंग -ए -तस्वीर  कुछ  जमा कुछ  धुला धुला   सा,

हकीक़त दिल की बयां हो  और दूर हो  जाए वो,
शायद  है  दिल  कुछ  बेख़ौफ़ कुछ  डरा  डरा सा,